पर हमारी टिप्पणी
सूफ़ी कौन है और उसका क्या काम है ?
सूफ़ी वह जिज्ञासु है जो जानना चाहता है कि उसकी हक़ीक़त क्या है और उसे किसने पैदा किया है ?
इन सवालों के लिए वह अपने तन-मन को निर्मल करता है। एकांत में मौन रहकर इन सवालों के जवाब की तलाश करता है।
जब ये सवाल उसके पूरे वुजूद पर छा जाते हैं तो उस पर उसकी रूहानी हक़ीक़त ज़ाहिर हो जाती है। यहीं पर उसे रूहानी ताक़त मिलती है और उसके बाद वह ख़ुदा के नूर की तजल्ली देखता है। ख़ुदा की तजल्लियां बेशुमार हैं और उनकी शक्लें भी बेशुमार हैं। तजल्ली ख़ुदा नहीं होती। ख़ुदा की तजल्ली साधक को तसल्ली देती है।
मुस्लिम सूफ़ी इन तजल्लियों से आगे बढ़ता है उस तजल्ली की तलाश में जिसे ‘तजल्ली ज़ाती बरक़ी‘ कहते हैं।
हर चीज़ नीयत और इरादे, तड़प और लगन के साथ वाबस्ता है।
शरीअत की पाबंदी में सूफ़ी और आम लोग बराबर हैं लेकिन जो चीज़ उन्हें ख़ास बनाती है, वह हैं उनके रूहानी तजर्बे।
ये तजर्बे आज भी सबके लिए उपलब्ध हैं।
ये तजर्बे उतने कठिन नहीं हैं जितने कि पढ़ने में लगते हैं।
एक एक क़दम आगे बढ़ा जाए तो सफ़र एक दिन तय हो ही जाता है। जबकि पूरे सफ़र का रूट एक दम देख लिया जाए तो हाथ पांव फूल जाते हैं।
आपकी पोस्ट अच्छी है।
शुक्रिया !
सूफ़ी वह जिज्ञासु है जो जानना चाहता है कि उसकी हक़ीक़त क्या है और उसे किसने पैदा किया है ?
इन सवालों के लिए वह अपने तन-मन को निर्मल करता है। एकांत में मौन रहकर इन सवालों के जवाब की तलाश करता है।
जब ये सवाल उसके पूरे वुजूद पर छा जाते हैं तो उस पर उसकी रूहानी हक़ीक़त ज़ाहिर हो जाती है। यहीं पर उसे रूहानी ताक़त मिलती है और उसके बाद वह ख़ुदा के नूर की तजल्ली देखता है। ख़ुदा की तजल्लियां बेशुमार हैं और उनकी शक्लें भी बेशुमार हैं। तजल्ली ख़ुदा नहीं होती। ख़ुदा की तजल्ली साधक को तसल्ली देती है।
मुस्लिम सूफ़ी इन तजल्लियों से आगे बढ़ता है उस तजल्ली की तलाश में जिसे ‘तजल्ली ज़ाती बरक़ी‘ कहते हैं।
हर चीज़ नीयत और इरादे, तड़प और लगन के साथ वाबस्ता है।
शरीअत की पाबंदी में सूफ़ी और आम लोग बराबर हैं लेकिन जो चीज़ उन्हें ख़ास बनाती है, वह हैं उनके रूहानी तजर्बे।
ये तजर्बे आज भी सबके लिए उपलब्ध हैं।
ये तजर्बे उतने कठिन नहीं हैं जितने कि पढ़ने में लगते हैं।
एक एक क़दम आगे बढ़ा जाए तो सफ़र एक दिन तय हो ही जाता है। जबकि पूरे सफ़र का रूट एक दम देख लिया जाए तो हाथ पांव फूल जाते हैं।
आपकी पोस्ट अच्छी है।
शुक्रिया !
सूफ़ी संत एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसमें हर वर्ग के लोगों की मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति हो सके। उन्होंने जनता को यह संदेश दिया कि मनुष्य और मनुष्य के बीच भेदभाव की दीवार व्यर्थ है। सभी मानव समान है। सबको एक दूसरे को प्रेम से गले लगाना चाहिए। भले ही रास्ते अलग हों किंतु सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही स्थान पर पहुंचना है और वह है ईश्वर से साक्षात्कार।
ReplyDeleteसूफ़ी दर्शन पर आपने हमेशा मार्ग दर्शन किया है।
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