Tuesday, April 17, 2012

लौकिक जीवन भी ढंग से वही जी पाता है जो अपने रब से प्यार करता है

पर एक टिप्पणी
लोगों की दिलचस्पी जीवन के ज़्यादा से ज़्यादा साधन जमा कर लेने में है।
इन्हीं साधनों को मांगने के लिए वे ईश्वर से प्रार्थनाएं करते हैं।
यह आम आस्तिकों का दर्जा है।
सूफ़ी वह है जो ख़ुदा को देने की कोशिश करता है।
ख़ुदा बंदे से उसका प्रेम चाहता है बिला शिरकते ग़ैरे।
जब बंदा ख़ुदा को प्यार का यह नज़राना देने की कोशिश करता है तो वह सूफ़ी बन जाता है और दूसरे गुण उसमें अपने आप विकसित हो जाते हैं।
पीर मुर्शिद यही सिखाते हैं।
किताबों में जो बातें भारी लगती हैं, वे उनकी तालीम की बरकत से आसानी से अमल में आ जाती हैं।
ख़ुदा की मुहब्बत का झरना जब बंदे के दिल में बहने लगता है और वह अपने रब की मर्ज़ी में अपनी मर्ज़ी फ़ना कर देता है तो वह दुख और भय से आज़ाद हो जाता है।
कोई दुख न तो उसे हार्ट अटैक कर पाएगा और न ही किसी डर से वह आत्महत्या करेगा।
लौकिक जीवन भी ढंग से वही जी पाता है जो अपने रब से प्यार करता है।
रब से प्यार न हो तो फिर इबादत महज़ एक ऐसा शरीर है जिसमें कि आत्मा ही नहीं है।
प्यार ज़िंदगी है।

1 comment:

  1. सही कहा है..सार्थक पोस्ट!

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